कभी गाँव की छत पे नाचते मोर को देखा,
और कभी आँधी तूफानों में उड़ते दुपट्टों को देखा |
किसी मोड़ पे तू नज़र तो आ जाए,
सोच के पहरों-पहरों वीरान रास्तो को देखा |
न हमने सदियों से, आईने में खुद को देखा |
तू मिल जाए अगर राह चलते चलते किसी सफ़र में,
हमने न कदमो पे पड़े छालों को देखा |
किसी ने चाँद को सबसे सुन्दर कहा था
लड़ते, लड़ते घंटो तक चाँद को देखा |
चुपके चुपके सनाटे में
तेरा घर चमकाते चाँद को देखा |